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अंधाधुंध दोहन के बावजूद गाँवों में आज भी प्रकृति ने अपनी सुंदरता को सहेज कर रखा है।

अपने युवावस्था में वरुणा नदी के पानी से सिक्का तक ढूँढ लेते थे ये बुजुर्ग ग्रामीण।

उबड़-खाबड़ रास्ते पर ज़िद और जुनून के साथ रामजी यादव

कोरउत पुल क पास दिखी ज़्यादा गंदगी, मानव मल से पटा था नदी का किनारा।

कोरउत पुल के पास नदी एवं पर्यावरण संचेतना यात्रा की टीम।

खेतों की औपचारिक सुरक्षा।

खेतों में मड़ई बनाकर आज भी होती है फसलों की रखवाली।

गंगा के मुकाबले वरुणा में इंसान कम नहाते हैं लेकिन साबुन वगैरह पर लगाम लगना चाहिए।

गंगा नदी के मुकाबले वरुणा में कपड़े कम धोए जाते हैं फिर भी यह पानी को खराब तो कर ही रहा है।

गाँव की मिट्टी से बने खिलौनों ने अपनी ओर आकर्षित कर लिया।

गाँव के पहलवानों के साथ वरुणा नदी हाल-अहवाल जानते हुए टीम।

गाँव में नदी और पर्यावरण पर आयोजित गोष्ठी के दौरान विमर्श।

ग्रामीणों को पर्यावरण की जानकारी देने के बाद।

चमाँव गाँव के पास अवैध खोदाई का नजारा।

तीखी धूप के बीच नदी एवं पर्यावरण संचेतना यात्रा का पांचवाँ कार्यक्रम

नदी एवं पर्यावरण संचेतना यात्रा का नेतृत्व करते हुए रामजी यादव।

नदी एवं पर्यावरण संचेतना यात्रा की टीम को मिला ग्रामीणों का साथ।

नदी किनारे पर्यावरण के लिए लोगों को जागरूक करते हुए नदी एवं पर्यावरण संचेतना यात्रा की टीम।

पिसौर पुल के पास वरुणा नदी की दुर्दशा।

पेड़ों की छाव में आराम।

फेसबुक लाइव पर नदी एवं पर्यावरण संचेतना यात्रा का उद्देश्य बताते हुए।

बंसवाड़ी की सुंदरता के बीच नदी एवं पर्यावरण संचेतना यात्रा की टीम।

बेबाकी से बोलीं 70 वर्षीय जगपत्ति- नदी में इ गंदगी तोही लोगन त कइला…

लोहता का ये इलाका दुर्गंधभरा था और धीरे-धीरे यह गंदगी वरुणा में समाहित हो जाती है।

वरुणा नदी किनारे जानवर ही आते ही पानी पीने।

वरुणा नदी की दुर्दशा, पानी हरा हो गया है और उस पर काई की मोटी परत जम गई है।

वरुणा नदी के तीरे-तीरे नदी एवं पर्यावरण संचेतना यात्रा की टीम।

वरुणा नदी में ऐसे दर्जनों नाले पानी को विषैला बना रहे हैं।

वरुणा नदी में कंकड़ फेंककर उसे निकालकर लाते थे झुरु प्रसाद (लाल टी-शर्ट में) और जीत लेते थे बाजी।

वरुणा नदी में गिरते सीवर के पानी को निहारते हुए ग्रामीण।

संगोष्ठी की शुरुआत से पहले।

हाथ में बैनर और मन में जुनून लेकर गाँव के ओर बढ़ते हुए नदी एवं पर्यावरण संचेतना यात्रा।

हाथ में बैनर थामे आगे का रास्ता तलाशते टीम।

इधर कसरत, उधर नदी एवं पर्यावरण संचेतना यात्रा की जानकारी देते हुए टीम।

वरुणा नदी पर ही निर्भर हैं कई ग्रामीण।

नदी किनारे पगडंडियों पर गाँव के लोग सोशल एंड एजुकेशनल ट्रस्ट के लोग।

पढ़ाई-लिखाई के साथ खेती-बारी के गुर भी सीख रहे हैं युवा पंचदेव चौधरी।

परिजन खेत में काम कर रहे हैं और बच्चे गिट्टियाँ खेल कर अपना मनोरंजन कर रहे हैं।

नदी के बारे में महिलाओं ने बताया- यहाँ पानी साफ है, हम कभी-कभा यहाँ नहाने आते हैं।

गाँवों में कहीं-कहीं मिट्टी का खनन आज भी हो रहा है।

धान की बुवाई से पहले खेत में हेंगी चलाते किसान।

महिलाएँ भी खेत में शुमार हैं।

घरौंदा सहेजते-सहेजते उम्र गुज़र गई फिर भी जुनून बरकरार है।

नदी एवं पर्यावरण संचेतना यात्रा के छठवें कार्यक्रम की शुरुआत कैलहट अखाड़े से हुई।

वरुणा की स्थिति को निहारते चलती टीम।

कहीं-कहीं नदी इतनी सूख गई है कि बीच का हिस्सा भी दिखने लगा है।

नदी के बारे में महिलाओं ने बताया- यहाँ पानी साफ है, हम कभी-कभा यहाँ नहाने आते हैं।

नदी एवं पर्यावरण संचेतना यात्रा टीम से ग्रामीण पूछ रहे थे- ये क्या हो रहा है साहब? जवाब सुनकर टीम के साथ जुड़ गए।

वरुणा नदी के दोनों किनारे गंदगी से पटे हुए हैं।

इस ग्रामीण ने कहा- सिर्फ जानवरों के लिए ही रह गया है वरुणा का पानी।

नवम्बर 2021 में सीएम के पोर्टल पर शिकायत कर गाँव के युवा सरोज मौर्या ने वरुणा नदी में पानी छोड़वाया था।

नदी के बारे में महिलाओं ने बताया- यहाँ पानी साफ है, हम कभी-कभा यहाँ नहाने आते हैं।

गाय-गोरू के लिए घास इकट्ठा करने नदी किनारे प्रतिदिन आते हैं गाँव के लोग।

कहीं-कहीं बीच में साफ-सुथरा है वरुणा का पानी लेकिन किनारे हैं काफी गंदगी।

गाँवों में बारहो मास मिलेंगे झूले।

उबड़-खाबड़ रास्तों पर चलकर नदी यात्रा को पूरा करने का जुनून।

नदी के बारे में महिलाओं ने बताया- यहाँ पानी साफ है, हम कभी-कभा यहाँ नहाने आते हैं।

कक्षा सात की छात्रा आकांक्षा, खेत में काम करने के बाद माँ के साथ घर के कामों में भी हाथ बंटाती है, पढ़ाई भी करती है।